hindisamay head


अ+ अ-

कविता

औरतें

मंजूषा मन


पानी
हाँ पानी सी ही होतीं हैं
औरतें...
जिस बर्तन में रखो
उसी रूप में ढल जातीं,
जो रंग मिले
उसी रंग में रँग जातीं हैं...
भावों की सर्दी में जम जातीं
प्रेम की तपिश पा
पल में पिघल जातीं हैं...
थोड़ा सा दर्द पा
भाव बन उड़ जातीं
दूसरे ही पल
नेह और ममता बन बरस जातीं हैं...
हाँ,
पानी ही तो होतीं हैं
औरतें...


End Text   End Text    End Text